टीबी, न्यूमोनिया व श्वसन से होने वाली मौत पर ध्यान नहीं
विकास नहीं, अधोगति : प्रदूषण रोकने में हर कोई फेल
अगस्त 2023 में चंद्रपुर को प्रदूषणपुर कहने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता व जिले के पालकमंत्री ने जिले के विविध उद्योगों के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए विश्व स्तर के प्रयास करने की सूचना सह्याद्री गेस्ट हाउस में आयोजित पर्यावरण समीक्षा बैठक में दी थी। मास्टर प्लान तैयार कर अमल में लाने के निर्देश भी दिये। करीब 8 माह बीत गए। कहीं कोई अमल नजर नहीं आ रहा है। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि प्रदूषण के चलते होने वाली बीमारियों, न्यूमोनिया व श्वसन के कारण जिले में 2016 तक किसी की मौत की जानकारी नहीं है। लेकिन वर्ष 2016 से 6 हजार 131 लोगों ने श्वसन संबंधित बीमारियों के कारण दम तोड़ दिया। वहीं बीते 10 वर्षों में प्रदूषण के चलते होने वाले टीबी से 887 लोगों की मौत हो गई। कुल मिलाकर गत 10 सालों में 7,018 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इन मौतों के लिए जिम्मेदार कौन है ? इस बारे में जागरूक जनता को गंभीरता से सोचना चाहिये।
साल के 365 में से 333 दिन प्रदूषित
पर्यावरणवादियों एवं प्रदूषण संबंधित रिपोर्टों में दावा किया जाता है कि चंद्रपुर अत्यधिक प्रदूषित शहरों में शुमार हैं। घुग्घुस व पड़ोली शहर भी पीछे नहीं है। दावा यह भी किया जाता है कि चंद्रपुर में वर्ष 2023 में 365 में से 333 दिन प्रदूषित पाएं गए।
लगातार जहरीली हो रही यहां की आबोहवा
चंद्रपुर जिले में बढ़ता प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। वर्ष 2023 में केवल 32 दिन ही स्वास्थ्य के लिए बेहतर थे। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल एवं महाराष्ट्र प्रदूषण मंडल की ओर से लिये गये हवा गुणवत्ता नमूनों की जांच में चंद्रपुर के हालात चिंताजनक बताए गए हैं। इसका इंसानी जीवन पर विपरीत असर हो रहा है।
27 हजार रोजगार के लिए 22 लाख लोगों के जीवन से खिलवाड़
चंद्रपुर जिले की जनसंख्या वर्ष 2011 की जनगणनना के अनुसार 22 लाख 04 हजार 307 है। वहीं जिले में वेकोलि की 29 कोयला खदानों समेत बल्लारपुर पेपर मिल, अंबुजा, एससीसी, अल्ट्राटेक, माणिकगढ़, दालमिया जैसे 5 बड़े सीमेंट कारखाने, औष्णिक बिजली निर्माण प्रकल्प, सेल का स्टील प्रकल्प, चांदा आयुध निर्माणी, लॉयड मेटल्स, धारीवाल, लोह व फौलाद प्रकल्प, राईस मिल, रसायन के कारखाने आदि 182 से अधिक उद्योग शुरू हैं। इनमें 27,713 कामगारों को रोजगार मिल रहा है। लेकिन 27 हजार लोगों के रोजगार का लाभ के बदले 22 लाख जनसंख्या वाले चंद्रपुर की आबोहवा जानलेवा हो चुकी है।
सरकारी आंकड़ें बयां कर रहे मौत का दर्दनाक रूप
प्रशासनीक
रिपोर्ट में दर्ज आंकड़ों से समूची सच्चाई का खुलासा हो जाता है। हमने वर्ष 2013 से
वर्ष 2023 के दौरान के सरकारी आंकड़ों की तुलना की। इन 10 वर्षों के आंकड़ों में जो
फर्क महसूस किया गया, वह अधोगति को साफ-साफ दर्शा रहा है। सालाना आंकड़े निम्नलिखित
है।
वर्ष
– श्वसन बीमारी से मौत – टीबी से मौत
वर्ष
2013 -0(श्वसन से मौत), 54(टीबी से मौत)
वर्ष
2014 -0(श्वसन से मौत), 58(टीबी से मौत)
वर्ष
2015 -0(श्वसन से मौत), 64(टीबी से मौत)
वर्ष
2016 -9(श्वसन से मौत), 140(टीबी से मौत)
वर्ष
2017 -1046(श्वसन से मौत), 122(टीबी से मौत)
वर्ष
2018 -619(श्वसन से मौत), 39(टीबी से मौत)
वर्ष
2019 -753(श्वसन से मौत), 84(टीबी से मौत)
वर्ष
2020 -697(श्वसन से मौत), 67(टीबी से मौत)
वर्ष
2021 -694(श्वसन से मौत), 136(टीबी से मौत)
वर्ष
2022 -1681(श्वसन से मौत), 56(टीबी से मौत)
वर्ष
2023 -632(श्वसन से मौत), 67(टीबी से मौत)
कुल
मौत 7018 - 6,131(श्वसन से मौत), 887(टीबी से मौत)
प्रदूषण से होता है न्यूमोनिया
वायु प्रदूषण से न्यूमोनिया सहित श्वसन संक्रमण का खतरा काफी बढ़ सकता है। इससे होने वाली लगभग आधी मौतें वायु प्रदूषण के कारण होती हैं। न्यूमोनिया फेफड़ों का एक तीव्र श्वसन संक्रमण है। इसका कोई एक ही कारण नहीं है - यह हवा में बैक्टीरिया, वायरस या कवक से विकसित हो सकता है। यह फेफड़ों का संक्रमण है, इसलिए सबसे आम लक्षण खांसी, सांस लेने में परेशानी और बुखार हैं।
प्रदूषण से होती है टीबी
ट्यूबरक्लोसिस, क्रोनिक संक्रामक संक्रमण है जो एयरबॉर्न बैक्टीरिया माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के कारण होता है। यह आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन लगभग कोई भी अंग इससे प्रभावित हो सकता है। ट्यूबरक्लोसिस मुख्य रूप से तब फैलता है जब लोग एक ऐसे व्यक्ति द्वारा दूषित हवा में सांस लेते हैं जिसे सक्रिय बीमारी है। पार्टिकुलेट मैटर 10 (पीएम10), सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2), नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओ2), कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) और ओजोन (ओ3) - लोगों को टीबी संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बनाते हैं । इसके अलावा, कुछ अध्ययनों से पता चला है कि वायु प्रदूषक टीबी रोगियों में मृत्यु के जोखिम को बढ़ाते हैं।
ऍक्शन प्लान की लगातार अनदेखी – प्रा. सुरेश चोपणे
जाने-माने पर्यावरणवादी प्रा. सुरेश चोपणे ने अनेक बार दावा किया है कि चंद्रपुर के वायु प्रदूषण को कम करने के लिए प्रशासन की ओर से 2 बार ऍक्शन प्लान तैयार किया गया। परंतु उसके अमल की ओर लगातार अनदेखी की जा रही है। इस गंभीर समस्या की ओर किसी का ध्यान नहीं है।
रेड जोन के कारखानों के प्रदूषण पर नहीं ध्यान
जिले
के उद्योगों से बड़े पैमाने पर रोजगार और वित्तीय चलन बढ़ता है। इसका लाभ राजनीतिक
दलों तक भी पहुंचता है। इलेक्टोरल बॉन्ड के रूप में चंद्रपुर जिले के उद्योगों से
214 करोड़ से अधिक का धन दलों को गया है। ऐसे में प्रदूषण बढ़ाने वाले इन उद्योगों
के खिलाफ प्रशासन के अधिकारी और नेता किस तरह से कठोर कार्रवाई कर पाएंगे, यह
सोचने वाली बात है। जिले के पालकमंत्री सुधीर मुनगंटीवार बीते अनेक वर्षों से
सत्ता की कुर्सी पर बैठे हैं। लेकिन वे भी प्रदूषित उद्योगों पर नियंत्रण रखने व
प्रदूषण दूर करने में नाकाम ही रहे हैं।