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381915 children suffered from malnutrition in 10 years : 10 साल में कुपोषण से पीड़ित हुए 3 लाख 81 हजार 915 बच्चे

बीते 2 वर्ष से फिर बढ़ने लगे कुपोषित बालक

विकास नहीं, अधोगति : बाल कल्याण के दावे फेल

कुपोषित रहेगा इंडिया तो कैसे बढ़ेगा इंडिया ? बाल कल्याण के असंख्य दावें हर सरकार करती हैं। लेकिन चंद्रपुर जिले में बीते 10 सालों में 3 लाख 81 हजार 915 बच्चे कुपोषण से ग्रस्त पाए गए। इनमें से 18 हजार 291 बच्चे तो ऐसे थे जो गंभीर कुपोषण के शिकार मिले। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार – इन्हें (SAM) अर्थात Severe Acute Malnutrition (SAM) is a condition in which a child has a very low weight in relation to length/height, as per WHO child growth standards कहा जाता है। वर्ष 2023 की प्रशासनीक रिपोर्ट के अनुसार जिले में गत वर्ष 4,043 मध्यम व तीव्र कुपोषित बालक पाए गए हैं। बीते 2 वर्ष से यह आंकड़ा पुन: बढ़ने लगा है। कांग्रेस के करीब 2 वर्ष का कार्यकाल छोड़ दें तो शेष 8 वर्ष से भाजपा के दिग्गज नेता सुधीर मुनगंटीवार ही जिले के पालकमंत्री रहे हैं। लेकिन वे भी इस गंभीर स्थिति से निपटने में नाकाम साबित हुए हैं। 

बाल कल्याण के भाजपा के दावे फेल

भारतीय जनता पार्टी की ओर से समय-समय पर बच्चों के कल्याण के लिए कल्याणकारी अनेक योजनाएं सफलता से चलाने का दावा किया जाता है। महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के सत्ताकाल में जिले में करीब 2 वर्ष कांग्रेस नेता विजय वडेट्‌टीवार पालकमंत्री रहे हैं। इस कार्यकाल के अतिरिक्त बीते 10 वर्षों में से 8 वर्ष भाजपा के वरिष्ठ नेता सुधीर मुनगंटीवार ने ही जिले में पालकमंत्री के तौर पर सत्ता की कमान संभाली हैं। स्थानीय जिला परिषद पर भी भाजपा नेताओं का ही कब्जा रहा है। इसके बावजूद जिले में कुपोषण समाप्त नहीं किया जा सका है। वहीं दूसरी ओर अच्छे दिन, फाइव ट्रिलीयन इकोनॉमी, विश्व गुरू भारत, सबसे बड़ी आर्थिक सत्ता आदि अनेक दावे भाजपा नेता करते रहते हैं। लेकिन बाल कल्याण की दिशा में भी इनके दावे फेल हैं। 

सरकारी आंकड़ें ही खोल रहे भाजपा के दावों की पोल

प्रशासनीक रिपोर्ट और राजनीतिक दलों के दावों में जमीन आसमान का फर्क नजर आता है। सरकारी रिपोर्ट में दर्ज आंकड़ों से समूची सच्चाई का खुलासा हो जाता है। हमने वर्ष 2013 से वर्ष 2023 के दौरान के सरकारी आंकड़ों की पड़ताल की। इन 10 वर्षों के आंकड़ों में कुपोषण को समाप्त करने जैसे ठोस कदम का असर दिखाई नहीं दिया। यह अधोगति को साफ-साफ दर्शा रहा है। सालाना आंकड़े निम्नलिखित है।

वर्ष – मध्यम कुपोषित – तीव्र कुपोषित - कुल
वर्ष 2013 -41777(मध्यम), 2089(तीव्र) =43,866
वर्ष 2014 -133976(मध्यम), 215(तीव्र) =1,34,191
वर्ष 2015 -99982(मध्यम), 1865(तीव्र) =1,01,847
वर्ष 2016 -22202(मध्यम), 3978(तीव्र) =26,180
वर्ष 2017 -19390(मध्यम), 3066(तीव्र) =22,456
वर्ष 2018 -18386(मध्यम), 2724(तीव्र) =21,110
वर्ष 2019 -16375(मध्यम), 2464(तीव्र) =18,839
वर्ष 2020 -2634(मध्यम), 623(तीव्र) =3,257
वर्ष 2021 -2567(मध्यम), 509(तीव्र) =3,076
वर्ष 2022 -2685(मध्यम), 365(तीव्र) =3,050
वर्ष 2023 -3650(मध्यम), 393(तीव्र) =4,043
कुल कुपोषित 3,81,915 – 3,63,624(मध्यम), 18,291(तीव्र)
 

क्या है कुपोषण ?

शरीर के लिए आवश्यक संतुलित आहार लंबे समय तक नहीं मिलना से बच्चे कुपोषित हो जाते हैं। इससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। बच्चों के अधिकांश रोगों की जड़ में कुपोषण ही होता है। इन्हें सूखा रोग या रतौंधी और यहां तक कि अंधत्व भी कुपोषण के ही कारण होता है। इसके अलावा भी पचासों रोग हैं जिनका कारण अपर्याप्त या असंतुलित भोजन होता है। 

कुपोषित बालक को कैसे पहचानें ?

यदि किसी बच्चे को संतुलित आहार के जरूरी तत्त्व लंबे समय न मिलें तो उसकी शारीरिक वृद्धि रुक जाती है। मांसपेशियां ढीली होकर सिकुड़ जाती है। झुर्रियां युक्त पीले रंग की त्वचा बन जाती है। शीघ्र थकान, मन में उत्साह का अभाव, चिड़चिड़ापन तथा घबराहट होती है। बाल रुखे और चमक रहित हो जाते हैं। चेहरा कांतिहीन, आंखें धंस जाती है। शरीर का वजन कम हो जाता है। कमजोरी, नींद तथा पाचन क्रिया गड़बड़ा जाती है। हाथ पैर पतले और पेट बढ़ा होकर बच्चों के शरीर में सूजन आ जाती है। 

कुपोषण के कारण

कुपोषण का प्रमुख कारण गरीबी है। धन के अभाव में गरीब लोग पर्याप्त, पौष्टिक चीजें जैसे दूध, फल, घी इत्यादि नहीं खरीद पाते। कुछ तो केवल अनाज से मुश्किल से पेट भर पाते हैं। गरीबी के अलावा अज्ञानता के चलते ग्रामीण अपने बच्चों को संतुलित भोजन नहीं दे पाते। गर्भावस्था के समय महिलाओं को पौष्टिक आहार न मिलना, खून की कमी, बीमारियां आदि कारण भी शिशु के कुपोषण का कारण बनती है। विकास के दावे करने वाले राजनेता चंद्रपुर जिले की गरीबी और कुपोषण की समस्या को दूर करने में नाकाम हुए हैं।