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240 pregnant women died, 190 died during delivery, 3177 infants died : 240 गर्भवतियां मरे, 190 प्रसूताएं मृत, 3177 शिशुओं ने तोड़ा दम


मातृत्व वंदन व महिलाओं के सम्मान में जैसे नारे बेनतीजा ?

धराशायी क्यों हो रहे चंद्रपुर विकास के तमाम दावें ?

ज्ञात हो कि हमने पिछले समाचारों में कुपोषण एवं बाल मृत्यु की भयावहता को गंभीरता से पेश किया। सरकारों, नेताओं और अफसरों के विकास संबंधित खोखले दावों और नारों की पोल खोल दी थी। चंद्रपुर जिले में खोखले विकास की विफलता संबंधित सरकारी कहानी यह बताती है कि बीते 10 सालों में 3 लाख 81 हजार 915 बच्चे कुपोषण से ग्रस्त पाए गए। इनमें से 18 हजार 291 बच्चे तीव्र कुपोषित मिले। वहीं 0 से 5 आयुसीमा वाले 5396 बच्चों की मौत हो गई। इनमें से 4324 शिशु ऐसे थे, जिन्होंने अपने जीवनकाल के एक वर्ष को भी पूरा नहीं किया था। अब यह सनसनीखेज मामला उजागर हो रहा है कि कैसे गत 10 वर्षों में 240 गर्भवतियां मर गई, 190 प्रसूताएं प्रसूति के दौरान मौत के आगोश में हमेशा के लिए सो गई। इसी समय अर्थात प्रसूति के वक्त 3177 शिशुओं ने भी दम तोड़ दिया। 

नेताओं के दावे व नारे हो रहे फेल

नेताओं की ओर से विकास के खोखले दावे सदैव किये जाते हैं। लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर जमीनी हकीकत सरकारी रिपोर्ट से बयां होने लगी है। गर्भवतियों, प्रसूताओं व शिशुओं की मौत रोकने में हर कोई नाकाम ही नजर आता है। जहां एक ओर बाल मृत्यु के चलते स्वास्थ्य व्यवस्था कटघरे में हैं, वहीं सरकार की तमाम कल्याणकारी योजनाएं संदेह से घिरी हैं। इस समस्या की ओर जिले के मौजूदा पालकमंत्री सुधीर मुनगंटीवार का ध्यान नहीं है। भाजपा नेताओं की ओर से मातृत्व वंदन, महिलाओं के सम्मान में – भाजपा मैदान में, गौमाता आदि-आदि नारे दिये जाते है। जबकि बीते 10 में से 8 वर्ष भाजपा के वरिष्ठ नेता सुधीर मुनगंटीवार ने ही पालकमंत्री के तौर पर चंद्रपुर जिले की कमान संभाली हैं। साथ ही वे महाराष्ट्र के वित्त मंत्री भी रहे हैं। वर्तमान में वे 3 विभागों के मंत्री भी है। परंतु गत गत 10 वर्षों में 240 गर्भवतियों, 190 प्रसूताओं व प्रसूति के वक्त 3177 शिशुओं को मौत से बचाने में कामयाब नहीं हो पाएं। या इन मौतों पर गंभीर चिंता जताते हुए स्वास्थ्य विभाग के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठा पाएं। हालांकि यह भी सच है कि 10 में से 2 वर्ष कांग्रेस के नेता विजय वडेट्‌टीवार भी पालकमंत्री रहे हैं। 

यह हालात बयां करतीं है सरकारी रिपोर्ट

सरकारी रिपोर्ट में उपलब्ध आंकड़ों से सच्चाई का पता चल जाता है। वर्ष 2013 से वर्ष 2023 के दौरान के सरकारी आंकड़ों के गहन अध्ययन के बाद हमने इसकी समीक्षा की। इन 10 वर्षों के आंकड़ों में गर्भवती माताओं की मौत, प्रसूताओं की मौत और प्रसूति के दौरान शिशुओं की मौत होना चिंताजनक है। यह आंकड़े व जानकारियां चंद्रपुर जिले के विकास की नहीं, बल्कि अधोगति का प्रतीक बनते जा रही है। सालाना आंकड़े निम्नलिखित है।

वर्ष – गर्भवति माताओं की मौत- प्रसूता की मौत –  नवजात शिशु
वर्ष 2013 -16(गर्भवती), 16(प्रसूता), 708(शिशु)
वर्ष 2014 -33(गर्भवती), 33(प्रसूता), 525(शिशु)
वर्ष 2015 -14(गर्भवती), 14(प्रसूता), 420(शिशु)
वर्ष 2016 -17(गर्भवती), 18(प्रसूता), 126(शिशु)
वर्ष 2017 -17(गर्भवती), 7(प्रसूता), 91(शिशु)
वर्ष 2018 -15(गर्भवती), 11(प्रसूता), 3(शिशु)
वर्ष 2019 -24(गर्भवती), 23(प्रसूता), 32(शिशु)
वर्ष 2020 -20(गर्भवती), 31(प्रसूता), 280(शिशु)
वर्ष 2021 -33(गर्भवती), 34(प्रसूता), 435(शिशु)
वर्ष 2022 -20(गर्भवती), 2(प्रसूता), 5(शिशु)
वर्ष 2023 -31(गर्भवती), 1(प्रसूता), 362(शिशु)
कुल – 240 गर्भवती मृत, -190 प्रसूता मृत -3177 शिशु मृत
 

कब बदलेंगे हालात, कैसी रुकेगी माता व शिशु मौत ?

गर्भवती, प्रसूता, नवजात मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए जिले में काफी प्रयास करने होंगे। माताओं को पौष्टिक आहार, चिकित्सा सुविधाएं, वजन बढ़ाना, टीके लगाना, स्वच्छता, दवाएं, समूपदेशन, बीमारियों की रोकथाम, पास में अस्पताल, एम्बुलेंस की सुविधा, विविध जांच के संसाधन आदि पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर औसतन हर दिन लगभग 800 गर्भवतियों की मौत हो रही हैं। गर्भावस्था के दौरान, प्रसव के समय या प्रसव के तुरंत बाद किसी महिला की मृत्यु उसके परिवार और पूरे समाज के लिए एक त्रासदी है। गर्भावस्था से संबंधित इन मौतों को रोका जा सकता है। भारत में मातृ मृत्यु दर को प्रभावित करने वाली मुख्य सामाजिक कारक आय की असमानता है। प्रसवोत्तर तथा प्रसवपूर्व अवधि में देखभाल तक पहुंच पाने का स्तर तथा महिला शिक्षा का स्तर अभी तक अच्छा नहीं हो सका है। इसके कारण आजकल यह स्थिति अधिक देखने को मिलती है।